संयुक्त मोर्चा टीम। अलीगढ (11 अप्रैल 2019)| चैत्र शुक्लपक्ष की अष्टमी तिथि को नवरात्रि अष्टमी तिथि मनाई जाती है। वहीं चैत्र शुक्लपक्ष की नवमी तिथि को नवमी तिथि को रामनवमी मनाई जाती है। क्योकि इसी तिथि को मध्यान्ह 12 बजे पुनर्वसु या पुष्य नक्षत्र में माता कौशल्या के यहाँ स्वयं हरि भगवान श्री राम ने जन्म लिया| 13 अप्रैल शनिवार को अष्टमी तिथि 11:41 तक रहेगी तत्पश्चात नवमी तिथि आरम्भ हो जायेगी जो 14 अप्रैल रविवार को 09:35 मिनट तक रहेगी, नवमी तिथि मध्यान्ह को स्पर्श नहीं करेगी क्योकि मध्यान्ह 11:06 मिनट से शुरू होगा| पुष्य नक्षत्र भी 07:39 पर समाप्त हो जाने से इस परिस्थिति में राम जन्मोत्सव नहीं मनाया जा सकता अतः राम जन्मोत्सव अष्टमी तिथि शनिवार को ही मनाया जायेगा| जिन लोगों ने घट स्थापन कर नवरात्रि का व्रत किया है वह व्यक्ति रविवार को नवमी उदया तिथि होने के कारण कन्यापूजन कर व्रत का पारायण कर सकेंगे, प्रतिपदा से नवमी तक पूर्ण नवरात्र का फल प्राप्त हो जायेगा| यह जानकारी वैदिक ज्योतिष संस्थान के अध्यक्ष एवं महामंडलेश्वर परमपूज्य स्वामी पूर्णानंदपुरी जी महाराज ने आमजन में आ रही तिथिओं की असमंजस्य स्थिति को दूर करते हुए दी|
परमपूज्य स्वामी पूर्णानंदपुरी जी महाराज के अनुसार इस दिन कन्याओं का पूजन कर नवरात्रि के नौ दिनों के व्रत का पारण किया जाता है। इस बार राम नवमी पुष्य नक्षत्र के योग में है। पुष्य नक्षत्र सभी 27 नक्षत्रों में सबसे सर्वश्रेष्ठ नक्षत्र माना गया है। भगवान राम का जन्म पुष्य नक्षत्र में हुआ था। रामनवमी की कहानी लंकाधिराज रावण से शुरू होती है। रावण अपने राज्यकाल में बहुत अत्याचार करता था। उसके अत्याचार से पूरी जनता त्रस्त थी, यहाँ तक की देवतागण भी, क्योंकि रावण ने ब्रह्मा जी से अमर होने का वरदान ले लिया था। उसके अत्याचार से तंग होकर देवतागण भगवान विष्णु के पास गए और प्रार्थना करने लगे। फलस्वरूप प्रतापी राजा दशरथ की पत्नी कौशल्या की कोख से भगवान विष्णु ने राम के रूप में रावण को परास्त करने हेतु जन्म लिया। तब से चैत्र की नवमी तिथि को रामनवमी के रूप में मनाया जाता है| माना जाता है कि सभी प्रकार के मांगलिक कार्य इस दिन बिना मुहूर्त विचार किये भी संपन्न किये जा सकते हैं।