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अलीगढ़ : जयगंज से निकाली गई रंगभरनी एकादशी शोभायात्रा

by vdarpan
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अलीगढ़।
होली खेल रहे बांके बिहारी, आज रंग बरस रहा….हवा में उड़ता गुलाल, कहीं फूलों की वर्षा तो कहीं टेसू के फूलों से हो रही होली। रविवार को अलीगढ़ में कुछ ऐसा ही नजारा देखने को मिला। जब ब्रिटिशकाल से निकलती आ रही रंगभरनी एकादशी शोभायात्रा का शुभारंभ हुआ।
जयगंज से रंगभरनी एकादशी पर निकलने वाली शोभायात्रा ब्रिटिशकाल के समय को याद दिलाती है। सालभर निकलने वाली शोभायात्राओं, मेलों में रंगभरनी एकादशी के मेले का अपना अलग ही स्थान है। होली के हुरियारों व श्रद्धालुओं को सालभर इस दिन कान्हा संग होली खेलने का इंतजार रहता है। शोभायात्रा के दौरान सड़कों पर लोग हाथोें में गुलाल लेकर होली खेलने को बेचैन दिखाई दे रहे थे। वहीं छतों से महिलाएं फूल बरसा रही थीं। शोभायात्रा के मार्ग पर इतना रंग बरसा कि सड़कें भी रंग बिरंगी दिखाई दे रहीं थीं।

हाथी पर निकलती थी सवारी
जयगंज से निकलने वाली रंगभरनी एकादशी शोभायात्रा की शुरुआत 1917 से हुई थी। बौहरे डूंगरमल दास ने इसे लक्ष्मी नारायण मंदिर से शुरू कराया। पुरोहित नित्य किशोर बताते हैं कि उस समय हाथी की सवारी आकर्षक हुआ करती थी। जयगंज सब्जी मंडी से बाला की सराय से आगरा रोड होते हुए वापस जयगंज शोभायात्रा पहुंचती थी। उन दिनों शोभायात्रा में रामानंद वरिष्ठ, नन्नूमल पुजारी, रोशन लाल महेश्वरी, कृष्ण गोपाल केला, बब्बन बाबू, कुंवर बहादुर जौहरी आदि लोग सहयोग करते थे।

तीन दिन तक होता था आयोजन
जयगंज के लक्ष्मीनाराण मंदिर के सामने आज से 50 साल पहले तीन दिन तक महोत्सव चलता था। रासलीला होती थी। राधा-कृष्ण के स्वरूप अपनी प्रस्तुति दिया करते थे। इनमें होली गायन की टोली होली के रसिया गाती थी। रसिया दंगल को सुनने के लिए दूर दराज से लोग आते थे। महंगाई और लोगों के पास समय का अभाव होने से अब आयोजन एक दिन का रह गया है।

होली खेलने को मांगते हैं ठाकुर जी से आज्ञा
मान्यता है कि प्रभु को होली खेलने के लिए मनाते हैं। कहते हैं कि प्रभु होली खेलने के लिए चलो। उस दिन बांसुरी ठाकुर जी की कमर पर रहती है। हाथ में चांदी की पिचकारी होती है।

ठाकुर जी को पहचान पाना होता है मुश्किल
रंगभरनी शोभायात्रा में भक्त इतना गुलाल ठाकुर जी पर फेंकते हैं कि उन्हें पहचान पाना मुश्किल हो जाता है। आगरा रोड स्थित गोपाल जी की बगीची पर ठाकुर जी के चेहरे को मखमली रूमाल से साफ कर भोग लगाकर भक्त आरती करते हैं।

हाथों से सिलती है ठाकुर जी की सफेद पोशाक
शोभायात्रा में सिंहासन पर विराजमान ठाकुर जी की पोशाक एक माह पहले ही बनाई जाती है। सफेद रंग की पोशाक पर नक्काशी को अपने हाथों से होती हैं। इसको बनाने में मशीन का कतई काम नहीं होता।

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