अलीगढ़ / संयुक्त मोर्चा टीम
शहर में इन दिनों बंदरों के काटने की खुली छूट मिली हुई है। इनको पकड़ने वाली मथुरा की एजेंसी का पुराना भुगतान नहीं होने पर एजेंसी ने बंदर पकड़ने का नया काम करने के लिए नगर निगम से इनकार कर दिया है। इस कारण जिला अस्पताल में भी बंदरों के काटने के बाद एंटी रैबीज लगवाने वाले मरीजों की संख्या बढ़ गई है। कुत्तों के काटने की समस्या पहले से ही शहर में नासूर बनी हुई है।
शहर में अब तक कुत्तों के काटने की समस्या विकराल थी। जिला अस्पताल के वरिष्ठ परामर्शदाता डॉ. यशपाल रावल कहते हैं कि जिला अस्पताल में प्रतिदिन करीब 250 से 300 लोग एंटी रैबीज इंजेक्शन के लिए आते हैं। इनमें से 40 फीसदी बंदरों के काटने के होते हैं। पिछले कुछ महीनों में बंदरों का व्यवहार आक्रामक हुआ है।
बंदरों के आक्रामक व्यवहार के कुछ संभावित कारण
– बंदरों की आबादी बढ़ना, उनके ठिकाने सीमित होना
– वातावरण में ध्वनि प्रदूषण और रेडियेशन का लगातार बढ़ना
– उनके खाने पीने के ठिकानों पर इंसानी दखल होना
बंदर पकड़ने गई टीम को बजरंगियों ने घेरा था
कासिमपुर पावर हाउस में बंदर पकड़ने आई टीम को बजरंगियों ने कुछ दिन पहले घेर लिया था। कुछ दिन पहले ही कासिमपुर पॉवर हाहस के परियोजना प्रबंधक आरके वाही के कहने पर ठेका लिया और 400 से ज्यादा बंदरों को पॉवर हाउस कालोनी से पकड़ा। जब वह टीम बंदरों को जाल में लेकर जाने लगी तो बजरंगियों ने यह कहते हुए कि यह हनुमान के अवतार हैं, टीम को घेर लिया और अभद्रता की। बाद में मामला थाने तक पहुंचा। टीम के सदस्यों ने जब परियोजना महाप्रबंधक से पुलिस की वार्ता करायी, उसके बाद ही टीम को छोड़ा गया।
आगरा में डिप्टी सीएम दिनेश शर्मा के सामने भी इस मामले को लेकर प्रशासन की चर्चा हुई। आगरा में हाल ही में बंदरों के काटने से तीन लोगों की मौत हो चुकी है। उम्मीद है कि सरकार जल्द इस मामले में सख्त कार्रवाई करने का निर्देश जारी करेगी
– सुबोध नंदन शर्मा, पर्यावरणविद्