अलीगढ़ / संयुक्त मोर्चा टीम
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के प्रपौत्र तुषार गांधी ने कहा कि हिंदुस्तान की आत्मा को बदलने का प्रयास किया जा रहा है। राष्ट्र की यदि आत्मा ही बदल दी जाएगी तो वह फिर राष्ट्र नहीं रह जाएगा। लोकतंत्र के हालात तेजी से बदलते जा रहे हैं, इसके लिए हम स्वयं जिम्मेदार हैं। नागरिकों को अपनी जिम्मेदारी समझनी होगी। प्रख्यात बुद्वजीवी एवं महात्मा गांधी के प्रपोत्र तुषार गांधी ने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के दर्शन शास्त्र विभाग द्वारा गांधी स्मृति विदर्शन समिति, नई दिल्ली एवं इंडिया लोग फाउन्डेशन नई दिल्ली के सहयोग से आयोजित दो दिवसीय गांधी जयंती राष्ट्रीय सेमिनार में हिस्सेदारी की। उन्होंने कहा कि गांधी पर हमला तेजी से बढ़ता जा रहा है भक्ति का सिर्फ किया जा रहा है। यह हमला लंबे समय से जारी है ऐसे में भक्ति के नाम पर ढोंग करना मजबूरी बन गई है। उन्होंने कहा कि गांधी को खत्म करने वाले इस बात को ध्यान रख ले कि उनकी विचारधारा को कभी खत्म नहीं किया जा सकता है। सबरीमाला पर उन्होंने कहा कि वहां जब जब मामला शांत होने को हुआ तो उसे राजनीतिक रंग देकर बढ़ावा दिया गया। कहा कि विवादों का समाधान उसी समय कर देना चाहिये जब वह उभर रहे हैं या उनके लक्षण प्रतीत हो रहे हों। विवाद बढ़ने पर या अधिक समय गुजर जाने पर उसका समाधान कठिन होता है। तुषार ने कहा कि महात्मा गांधी ने परम्परारिक न्याय व्यवस्था से अलग हट कर वैकल्पिक समाधान का मार्ग अपनाने की वकालत की। उसे करके भी दिखाया जिससे समाज में सौहार्द बना रहता है और सम्बन्धित लोग हृदय से संतुष्ट होते हैं।
बापू ने सदैव विवाद को उत्पन्न होते ही समाप्त करने का किया प्रयास
दर्शनशास्त्र विभाग में आयोजित का विषय कांफ्रेंस का विवादों की वैकल्पिक समाधान के संदर्भ में गांधीआई दृष्टिकोण रहा। उन्होंने आगे कहा कि परम्पारिक न्याय व्यवस्था में विवाद तथा झगड़े का अंतिम समाधान नहीं होता बल्कि पक्षों के दिलों में अन्याय का बोध तथा घृणा बनी रहती है। बापू ने सदैव विवाद को उत्पन्न होते ही समाप्त करने का प्रयास किया और इसके लिये उन्होंने संवाद एवं सत्य गृह का मार्ग अपनाया। दूसरे के लिये आदर सम्मान और समझने की भावना, बर्दाश्त करने की भावना से बढ़ कर है। उन्होंने कहा कि वर्तमान में विरोध तथा विवाद को अपने लाभ के लिये प्रयोग किया जा रहा है। जिसके कारण लोग अलग अलग क्षेत्रों में निवास करने पर विवश हो गये हैं। कहा कि इन परिस्थितयों में अपने और गैर की कल्पना जन्म लेती है और इन दरारों को भरने पर विचार किया जाना चाहिये। उन्होंने कहा कि इन दरारों के कारण उत्पन्न होने वाले झगड़े एवं हिंसा र्केसर के समान है। जिनका अंतिम समय तक कोई समाधान नहीं हो सकता।
कुछ अंग्रेजों की हत्या पर गांधीजी ने आंदोलन समाप्त कर शुरू कर दी थी सत्याग्रह
समारोह में तुषार गांधी ने कहा कि चोरा चोरी में कुछ अंग्रेजों की हत्या पर गांधी जी ने अपना आंदोलन समाप्त करके सत्याग्रह प्रारंभ कर दी थी। क्योंकि उनका कहना था कि लोगों की हत्या करके हमें स्वतंत्रता प्राप्त नहीं करनी है। महात्मा गांधी ने इन परिस्थतियों में दूसरों पर आरोप नहीं धरे बल्कि अपनी अंतर आत्मा में झांक कर देखा और टटोला और कहा कि हमारे लोग अभी स्वतंत्रता के लिये तेयार मालूम नहीं होते। तुषार गांधी ने उन्होंने कहा कि विवाद के समाधान के वैकल्पिक तरीके में पारदर्शिता बरती जाती है साथ ही साथ सांस्कृतिक एवं सामाजिक परम्पराओं का भी ख्याल रखा जाता है जिससे समाज में सौहार्द बना रहता है।
सीआरपीएफ व पुलिस जवानों को दे रहे अहिंसा के प्रचार प्रसार का प्रशिक्षण: कुन्दू
अलीगढ़। गांधी स्मृति विदर्शन समिति नई दिल्ली के कार्यक्रम अधिकारी वेद अभियास कुन्दू ने संस्था की गतिविधियों पर प्रकाश डालते हुए बताया कि अंहिसा के गांधीआई दर्शन शास्त्र तथा अंहिसा के प्रचार प्रसार के तरीके का प्रशिक्षण सीआरपीएफ, पुलिस जवानों तथा सिविल सर्वेंट्स को दिया जा रहा है। इंडिया लॉग फाउन्डेशन के महासचिव एम बेहजाद फातिमी ने सभी का आभार जताया। संचालन जैद एक सिद्दीकी ने किया।
अंतरधार्मिक सौहार्द के लिए हो परिचर्चा, शामिल हो बुद्धिजीवी: एएमयू वीसी
अलीगढ़। एएमयू कुलपति प्रो़ तारिक मंसूर ने कहा कि संवाद ही मतभेद को समाप्त करने का सबसे बड़ा माध्यम है। उन्होंने कहा कि देशों के बीच विवादों को समाप्त करने के लियं संवाद होना चाहिये तथा एक सभ्य समाज में घृणा एवं हिंसा के लिये कोई स्थान नहीं है। उन्होंने कहा कि अन्तरधार्मिक सौहार्द के लिये भी परिचर्चा होना चाहिये और उसमें बुद्विजीवियों को शामिल करना चाहिये।
कई देशों में अपनाये जा रहे गांधी के सिद्धांत, यहां भी आवश्यकता: विभागाध्यक्ष
अलीगढ़। दर्शन शास्त्र विभाग के अध्यक्ष प्रो़ तारिक इस्लाम ने अतिथियों का स्वागत करते हुए विषय का परिचय कराया। उन्होंने कहा कि महात्मा गांधी ने विवादों के समाधान के लिये जो वैकल्पिक तरीका अपनाया आज उसकी महती आवश्यकता है। कहा कि कई देशों में इसे अपनाया जा रहा है। क्योंकि इससे समाजी वातावरण प्रभावित नहीं होता। गांधी जी ने एक अधिवक्ता होते हुए भी न्यायालय से बाहर विवादों के निबटारे तथा बर्तानवी न्याय व्यवस्था को साम्राजी व्यवस्था का ही एक भाग बताते हुए संवाद तथा परिचर्चा से समस्याओं का समाधान करने पर बल दिया जिसमें एक दूसरे की भावना का ख्याल रखा जाता है।