Home अंतरराष्ट्रीय प्रोफेसर दंपति ने तैयार किया इंडस्ट्रियल कचरा साफ करने का पॉलिमर

प्रोफेसर दंपति ने तैयार किया इंडस्ट्रियल कचरा साफ करने का पॉलिमर

by vdarpan
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अंतरराष्ट्रीय / संयुक्त मोर्चा टीम
डीडीयू के एमेरिटस प्रोफेसर ईश्वर दास व उनकी पत्नी सेंट एंड्र्यूज कालेज की एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. नमिता रानी अग्रवाल ने एक ऐसा पॉलिमर (सिंथेटिक या आर्टिफीसियल मेटल) तैयार किया है, जिससे औद्योगिक कचरा साफ किया जा सकता है। डीडीयू व बीएचयू की लैब में इसकी टेस्टिंग की गई, जिसमें यह पाया गया कि कपड़ों व चमड़े की इंडस्ट्री से निकले गंदे पानी से इस मेटल ने मेथिलीन ब्लू नामक खतरनाक कचरा पूरी तरह से सोख लिया। इससे संबंधित प्रोफेसर दंपति का शोध पत्र अमेरिका के प्रतिष्ठित जर्नल, जर्नल ऑफ केमिकल एंड इंजीनियरिंग में हाल ही में प्रकाशित हुआ है।
हिन्दुस्तान खास
-प्रो. ईश्वर दास और सेडिका की डॉ. नमिता रानी अग्रवाल की है रिसर्च
-6 साल में कंडक्टिंग पॉलिमर तैयार, डीडीयू और बीएचयू लैब में परीक्षण
-अमेरिकी जर्नल जर्नल ऑफ केमिकल एंड इंजीनियरिंग डाटा में प्रकाशन
-नैनो साइज का तैयार हुआ सिंथेटिक मेटल, बायोसेंसर जैसे करता काम
-इस्तेमाल से टेनरी व चमड़े की इंडस्ट्रीज में आसानी से साफ होगा कचरा
-नदियों से जल प्रदूषण समाप्त करने के लिए मिलेगा यह सस्ता विकल्प

रसायन शास्त्र विभाग से रिटायर होने के बाद प्रो. दास बॉटनी विभागाध्यक्ष के साथ मिल कर नए शोध में जुटे हैं। डॉ. नमिता रानी सेंट एंड्र्यूज कॉलेज में रसायन शास्त्र विभाग में कार्यरत हैं। कंडक्टिंग पॉलिमर पर वर्ष-2000 में रसायन शास्त्र का नोबल भी मिला था। यहीं से प्रो. ईश्वर दास के मन में इस पर रिसर्च करने का विचार आया। डॉ. नमिता के साथ मिलकर उन्होंने 2013 में इस पर रिसर्च शुरू की। थियरेटिकल अध्ययन के बाद प्लेटिनम के दो इलेक्ट्रोड तैयार किए और कई तापमान पर नया मेटल सिंथेसाइज करने का काम शुरू किया। लंबे प्रयास के बाद उन्हें वह पर्यावरण मिल गया, जिस पर नए मेटल सिंथेसाइज होने लगे। नए मेटल तैयार होने के बाद डीडीयू, सेडिका व बीएचयू की लैब में परीक्षण किए जाने का सिलसिला शुरू हुआ। प्रोफेसर दंपति ने केन्द्रीय नमक व समुद्रीय रसायन अनुसंधान संस्थान, भावनगगर गुजरात के डॉ. विनोद कुमार शाही व अपने शोध छात्रों की भी मदद ली। इस वर्ष जुलाई में ऐसा मेटल मिल गया, जो इंडस्ट्री के निकले गंदे पानी से मेथिलीन ब्लू नामक खतरनाक रसायन पूरी तरह से साफ हो गया।
इसके बाद उन्होंने अपना शोध पत्र अमेरिका के प्रतिष्ठित जर्नल को भेजा। जर्नल से जुड़े वैज्ञानिकों ने प्रोफेसर दंपति से ईमेल पर बात की। कुछ और परीक्षण ऑनलाइन कराए, जिसमें उनका दावा सही साबित हुआ। इस आधार पर उनका शोध पत्र प्रकाशित हुआ है।
प्रो. ईश्वर दास व डॉ. नमिता रानी ने बताया कि मेटल नैनो साइज का है। परीक्षण में इसीलिए देर हुई क्यों कि अति सूक्ष्म मेटल के परीक्षण के लिए उत्कृष्ट उपकरणों की जरूरत थी। डॉ. विनोद कुमार शाही ने बीएचयू के केमिकल लैब से मदद लेकर इसकी राह आसान कर दी। मेथिलीन ब्लू नामक रसायन उन सभी इंडस्ट्री से निकलता है, जो कपड़ों या चमड़ों को डाई करती हैं। यह नीले व बैगनी दोनों रंग का होता है। पानी का रंग इसके चलते नीला या बैगनी हो जाता है। मेडल डालने के बाद पानी पूरी तरह से साफ हो जाता है। उसमें मौजूद सभी तरह के प्रदूषित तत्वों को यह मेटल बायोसेंसर की तरह काम करते हुए सोख लेता है। भविष्य में नदियों की गंदगी साफ करने में यह मेटल काफी कारगर साबित हो सकता है।

कैंसर कारक है मेथिलीन ब्लू
प्रो. दंपति ने बताया कि मेथिलीन ब्लू कैंसर जैसे घातक रोग का कारक होता है। इसके इस्तेमाल से आंख की रोशनी तक गायब हो सकती है। इसके अलावा अन्य तमाम बीमारियां भी इसके कारण होती है। फिलहाल इंडस्ट्री अपने एफ्लुएंस को साफ करने के लिए ट्रीटमेंट प्लांट लगाती है, मगर यह बेहद खर्चीला होता है। उनके द्वारा तैयार सिंथेटिक मेटल से कचरा साफ करने में बेहद कम खर्च आएगा।

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