राष्ट्रीय / संयुक्त मोर्चा टीम
नवरात्रि में मां दुर्गा के 9 स्वरूपों की पूजा के बाद दसवें दिन दशहरे का त्योहार मनाया जाता है. भारतीय संस्कृति में दशहरे के पर्व का खास महत्व है. दशहरे पर रावण का दहन किया जाता है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि देश में कई ऐसी जगहें हैं जहां रावण के दहन के बाद शमी के पेड़ की पूजा की जाती है.
दशहरा का पर्व असत्य पर सत्य की जीत का प्रतीक है. इस दौरान की कई जगहों पर रावण को जलाने के साथ-साथ शमी के पेड़ की भी पूजा की जाती है. वहीं कई जगहें ऐसी भी हैं जहां इस पेड़ को सोना समझकर देने का प्रचलन है
मान्यता है कि महाभारत के युद्ध के दौरान पांडवों ने शमी के पेड़ के ऊपर ही अपने हथियार छुपाए थे, जिसके बाद उन्हें कौरवों से विजय प्राप्त हुई थी.
धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक, जिस वर्ष शमी का पेड़ ज्यादा फूलता है. उस साल सूखे की स्थिति का निर्माण होता है. इस पेड़ को लेकर ये भी मान्यता है कि ये पेड़ आने वाली सभी विपदाओं का पहले से ही संकेत दे देता है. इसकी मदद से किसान आने वाले संकटों को लेकर पहले से ही सतर्क हो जाते हैं.
पौराणिक मान्यताओं में शमी का वृक्ष बड़ा ही मंगलकारी माना गया है. लंका पर विजयी पाने के बाद श्रीराम ने शमी पूजन किया था. नवरात्र में भी मां दुर्गा का पूजन शमी वृक्ष के पत्तों से करने का विधान है. गणेश जी और शनिदेव, दोनों को ही शमी बहुत प्रिय है.
शनि के कोप से बचाता है शमी- न्याय के देवता शनि को खुश करने के लिए शास्त्रों में कई उपाय बताए गए हैं, जिनमें से एक है शमी के पेड़ की पूजा. शनिदेव की टेढ़ी नजर से रक्षा करने के लिए शमी के पौधे को घर में लगाकर उसकी पूजा करनी चाहिए.
पीपल के विकल्प के तौर पर शमी- पीपल और शमी दो ऐसे वृक्ष हैं, जिन पर शनि का प्रभाव होता है. पीपल का वृक्ष बहुत बड़ा होता है, इसलिए इसे घर में लगाना संभव नहीं होता. वास्तु शास्त्र के मुताबिक, नियमित रूप से शमी वृक्ष की पूजा की जाए और इसके नीचे सरसों तेल का दीपक जलाया जाए, तो शनि दोष से कुप्रभाव से बचाव होता
जानें, रावण दहन के बाद क्यों की जाती है शमी वृक्ष की पूजा?
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