नई दिल्ली। जब बड़े-बड़े संपादक पैसों के आगे बिक गए या फिर गुरमीत राम रहीम के रसूख के आगे नतमस्तक हो गए। तब एक सांध्यकालीन अखबार के संपादक ने अपनी कलम की ताकत का एहसास कराया था। तोप से भी ताकतवर कलम होती है। बैनर से नहीं धारदार खबरों से कोई पत्रकार बड़ा बनता है। साहसिक रिपोर्ट तहलका मचाती ही है, चाहे वह रिपोर्ट किसी छोटे-अखबार में ही क्यों न छपे। सीने पर गोलियों खाने से पहले गुरमीत की पापी दुनिया को हिलाकर यह साबित कर दिखाया जाबांज पत्रकार रामचंद्र छत्रपति ने। जिसने सबसे पहले 2002 में गुरमीत राम रहीम के पापों का भंडाफोड़ किया। डेरे के अंदर अय्याशियों के किस्से छापे। बताया कि कैसे लड़कियों को साध्वी के रूप में बंधक बनाकर रखा जाता है। डेरे में उन्हें देवियां कहकर पुकारा तो जाता है, मगर उनकी हालात वेश्याओं से भी बदतर है। वेश्याएं किसी से पैसे लेकर रजामंदी से संबंध बनाती हैं, मगर यहां तो बाबा राम रहीम बिना मर्जी ही उन्हें जब मन करता है, हवस का शिकार बनाते हैं।
पांच करोड़ भक्तों के स्वयंभू देवता बने इस ढोंगी बाबा के खिलाफ जब कोई चूं तक करने की जुर्रत नहीं समझता था, तब इस स्थानीय अखबार के संपादक ने अकेले मोर्चा खोलने की हिम्मत दिखाई। अगर रामचंद्र छत्रपति जान पर खेलकर बलात्कारी पीड़िता को न्याय दिलाने के लिए खबरें न छापते तो शायद हम 15 साल पुराने उस मामले से अनभिज्ञ रहते। और न ही आज बलात्कारी बाबा सलाखों के भीतर जाता।
जब तमाम मीडिया संस्थानों ने बलात्कार की शिकार साध्वी की उस चिट्ठी को संज्ञान में नहीं लिया, तब डंके की चोट पर रामचंद्र छत्रपति ने उस दो पन्ने की गुमनाम पाती को अपने छोटे से अखबार में छापा। चूंकि रिपोर्ट सनसनीखेज थी। बस फिर क्या था तहलका मच गया पूरे पंजाब में। बलात्कारी बाबा की दुनिया ही हिलनी शुरू हो गई। बाबाओं के गुंडे उबल पड़े।
छत्रपति की खबरों से सिंहासन डोलता नजर आया तो फिर गुरमीत राम रहीम ने दूसरे हत्याकांड की साजिश रच दी। बलात्कार के पाप पर पर्दा डालने के लिए इससे पहले गुरमीत साध्वी के भाई रणजीत की हत्या करा चुका था। इसकी खबर भले औरों ने भी छापी मगर यह हत्या गुरमीत ने कराई, इसका खुलासा करने का साहस सिर्फ छत्रपति ने दिखाया। रामचंद्र ने खबर में गुरमीत का कनेक्शन जोड़ते हुए कहा कि हत्या मे पुलिस को जो रिवॉल्वर मिली थी, उसका लाइसेंस डेरा के एक व्यक्ति के नाम था।इससे पता चलता है कि गुरमीत ने ही हत्या की।
24 अक्टूबर 2002। यही वह तारीख थी। गुरदीप सिंह के इशारे पर डेरा के गुर्गे धमक पड़े रामचंद्र छत्रपति के ठिकाने पर। छत्रपति को घर के बाहर बुलाकर गुर्गों ने पांच गोलियां मारकर बुरी तरह घायल कर दिया गया। चूंकि छत्रपति सच्चाई लिखने से नहीं चूकते थे, उनकी धारदार पत्रकारिता की तूती बोलती थी। लोकप्रिय थी। इस नाते 25 अक्टूबर 2002 को घटना के विरोध में सिरसा शहर बंद रहा। 21 नवंबर 2002 को सिरसा के पत्रकार रामचंद्र छत्रपति की दिल्ली के अपोलो अस्पताल में मौत हो गई। बाबा के रसूख के आगे पंजाब पुलिस ने एक बार फिर घुटने टेक दिए। गुरमीत का नाम केस से बाहर कर दिया। जिस पर दिसंबर 2002 को छत्रपति परिवार ने पुलिस जांच से असंतुष्ट होकर मुख्यमंत्री से मामले की जांच सीबीआई से करवाए जाने की मांग की।
जनवरी 2003 में पत्रकार छत्रपति के बेटे अंशुल छत्रपति ने हाई कोर्ट में याचिका दायर कर छत्रपति प्रकरण की सीबीआई जांच करवाए जाने की मांग की। याचिका में डेरा प्रमुख गुरमीत सिंह पर हत्या किए जाने का आरोप लगाया गया। हाईकोर्ट ने 10 नवंबर 2003 को सीबीआई को एफआईआर दर्ज कर जांच के आदेश जारी किए। दिसंबर 2003 में सीबीआई ने छत्रपति व रणजीत हत्याकांड में जांच शुरू कर दी। रेप मामले में गुरमीत दोषी सिद्ध हो गया है, मगर अभी पत्रकार की हत्या के मामले में फैसला व सजा बाकी है।
(साभार:इंडिया संवाद)