राष्ट्रीय / संयुक्त मोर्चा टीम
(Makar Sankranti 2019) मकर संक्रांति 2019 इस बार 15 जनवरी को मनाई जा रही है. मकर संक्रांति पर इस बार कई ऐसे दुर्लभ संयोग बन रहे हैं जो कई हजारों वर्षों बाद आए हैं. मकर संक्रांति पर शाकंभरी नवरात्र की शुरुआत हो रही है. इसके अलावा दुर्गाष्टमी और ग्रह-नक्षत्रों के कई शुभ संयोग मकर संक्रांति को खास बना रहे हैं.
सौरमंडल के अधिष्ठाता सूर्यदेव सोमवार (14 जनवरी 2019) शाम 7 बजकर 53 मिनट पर मकर राशि में प्रवेश करेंगे. यह परिवर्तन मकर संक्रांति (Makar Sankranti Time) कहलाता है. आगामी 6 माह सूर्य उत्तरायण रहेंगे. उत्तरायण का आगमन लोक समाज में नव ऊर्जा उत्साह उमंग लेकर आता है. विवाहादि मांगलिक आयोजनों की शुरूआत होती है. धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष सभी में उत्तरायण सूर्य विशेष प्रभावी होते हैं. इस बार की मकर संक्रांति किन-किन कारणों से खास है, बता रहे हैं ज्योतिषाचार्य पंडित अरुणेश कुमार शर्मा.
शाकंभरी नवरात्रारंभ- मकर संक्रांति से माता शाकंभरी नवरात्र का आरंभ हो रहा है. पौष कृष्ण पक्ष की अष्टमी से पौष पूर्णिमा तक मां शाकम्भरी नवरात्रि पर्व मनाया जाएगा. इस बार यह मकर संक्रांति से आरंभ हो रहा है. अतः अतिविशेष फलदायी है. पौष पूर्णिमा 21 जनवरी को माता की जयंती है. पुष्य नक्षत्र है और खग्रास चंद्रग्रहण भी है. आरंभ भी सोमवार से ही हो रहा है. शाकंभरी को वनस्पति की देवी माना जाता है. सब्जियों से पूजा की जाती है. इन्हें मां अन्नपूर्णा माना जाता है. पांडवों ने परिजन हत्या दोष मुक्ति के लिए मां की पूजा आराधना की थी. शाकंभरी मां के तीन शक्तिपीठ हैं. पहला सीकर, राजस्थान में है. यह सकराय माताजी विख्यात है. दूसरा राजस्थान के सांभर जिले में शाकंभर में स्थित है. तीसरा सहारनपुर उत्तरप्रदेश में है. पुराणों के अनुसार दानवों के अत्याचार से भीषण अकाल से पीड़ित धरा को बचाने माता ने अवतार लिया. वे हजारों नेत्रों से इन नौ दिनों तक रोती रहीं. इससे हरियाली पुनः स्थापित हुई.
दुर्गाष्टमी- मकर संक्रांति इस बार अष्टमी को है. अष्टमी तिथि न सिर्फ दुर्गा मां की साधना-आराधना की होती है बल्कि ग्रहगोचर में सूर्य-पृथ्वी-चंद्रमा के बीच 90 डिग्री का कोण बनाती है. यह समय प्रकृति के नजरिए से समत्व का होता है. शक्ति अर्जन और ध्यान योग का होता है. कारण, इस तिथि के आसपास प्राकृतिक आपदाओं की आशंका से सबसे कम होती है. समुद्र भी ज्वार-भाटा मुक्त रहता है. महत्वपूर्ण संकल्पों को ऐसे समय में बल मिलता है.
अश्विनी नक्षत्र- मकर संक्रांति अश्विनी नक्षत्र में है. यह राशि चक्र का पहला नक्षत्र है. अर्थात् 27-28 नक्षत्रों का नवचक्र भी संक्रांति से शुरू हो रहा है. अश्व से अश्विनी शब्द बना है. अश्व सूर्य के रथ को खींच रहे हैं. अर्थात् सूर्य की गत्यात्मकता में सहायक हैं. सूर्य के औरस पुत्र अश्विनी कुमार हैं. इन्हें चिकित्सकीय योग्यता के लिए जाना जाता है. पांडवों में दो भाई नकुल-सहदेव इन्हीं के मानसपुत्र माने जाते हैं.
कुटुम्बों के करीब सूर्यदेव-राहू केतु और शनि इस बार मकर संक्रांति काल में सूर्य के करीब हैं या सूर्यदेव को देख रहे हैं. शनि सूर्य के पुत्र हैं. राहु-केतु सूर्य के ही प्रकाश से निर्मित छाया ग्रह हैं. चंद्रमा भी इस बार केतु के नक्षत्र अश्विनी में हैं. इतना ही नहीं शुक्र-मंगल भी शनि के नक्षत्र में विद्यमान हैं. और सौरमंडल के सबसे बड़े ग्रह गुरु नक्षत्रों में ज्येष्ठ नक्षत्र ज्येष्ठा में हैं. यह सहस्त्राब्दियों में बनने वाला अत्यंत दुर्लभ और अद्भुत संयोग है. ऐसे में यह सूर्य की विशेष कृपा देने वाला काल है. पुराणों के अनुसार मकर संक्रांति मनाई भी इसलिए जाती है कि सूर्यदेव पुत्र शनि से नाराजगी भुलाकर उनके घर आते हैं.
सिद्ध योग- संक्रांति काल में सिद्ध योग है. यह योग समस्त कार्यों को सिद्ध करने वाला है. पुण्य बढ़ाने वाला है. इसके प्रभाव से उत्तरायण सूर्य इस बार समस्त चराचर के लिए सुख सौख्य लेकर आए हैं. धनधान्य समृद्धि बढ़ाने वाले हैं. सिद्ध योग 15 तारीख को प्रातः 6 बजकर 51 मिनट तक रहेगा. इस पुण्यकाल में स्नान-दान से लोगों के समस्त कार्य सिद्ध होंगे.