राष्ट्रीय / संयुक्त मोर्चा टीम
6 साल पहले हुए निर्भया गैंगरेप ने पूरे देश को हिला के रख दिया था. समाज में आज भी ऐसी सैकड़ों निर्भया हैं जो समाज का दंश झेलने को मजबूर हैं. इन घटनाओं ने ना केवल उनके जिस्म को ताउम्र न भूल पाने वाले घाव दिया बल्कि अदालत, समाज और लोगों से उनको जलील भी होना पड़ा, लेकिन अब और नहीं क्योंकि मर्यादा के लिए मार्च हो रहा है.
6 साल पहले हुए निर्भया गैंगरेप ने पूरे देश को हिला के रख दिया था. समाज में आज भी ऐसी सैकड़ों निर्भया हैं जो समाज का दंश झेलने को मजबूर हैं. इन घटनाओं ने ना केवल उनके जिस्म को ताउम्र न भूल पाने वाले घाव दिया बल्कि अदालत, समाज और लोगों से उनको जलील भी होना पड़ा,लेकिन अब और नहीं क्योंकि मर्यादा के लिए मार्च हो रहा है.
गैंगरेप पीड़िता ने बताया कि जब आरोपी को कोई शर्म नहीं होती तो हमें क्यों हो? घटना के बाद पुलिस, अदालत समाज सभी शर्मिंदा करते हैं, लेकिन अब और नहीं. पिछले 65 दिनों में भारत के कोने-कोने से गुजरते हुए 10 हजार किलोमीटर की दूरी तय कर कई पीड़िताएं दिल्ली के रामलीला मैदान में जुटीं.आयोजक आसिफ शेख ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद भी 2 फिंगर टेस्ट और हर जिले में वन स्टॉप क्राइसिस सेंटर नहीं बनाया गया. डिग्निटी मार्च में हजारों की संख्या में बलात्कार और यौन हिंसा से बच निकलने वाले इकट्ठा हुए. आयोजक आसिफ शेख का दावा है कि भारत के 25 राज्यों के 250 जिलों के 25000 पीड़िता उनके परिवार के सदस्यों को मोबिलाइज करने का पहला अखिल भारतीय नेटवर्क है.
एक सर्वेक्षण से पता चला कि यौन हिंसा के शिकार लोगों की संख्या चिंताजनक रूप से अत्यधिक है, पर बच्चों और महिलाओं के साथ होने वाली यौन हिंसा के 95 फीसदी मामले दर्ज नहीं हो पाते और पीड़िता शर्मिंदा रहती हैं. वे समाज द्वारा माथे पर कलंक लगाए जाने के डर से इस बारे में कुछ नहीं कहती.
खासतौर से जहां तक बच्चों का संबंध है अधिकांश अपराधों का पता ही नहीं चल पाता. इस मामले में लगभग ना के बराबर दोष सिद्धि हो पाता है. इस बात का भी पता चला कि महिलाओं और बच्चों के साथ होने वाली यौन हिंसा के 95% मामले दर्ज नहीं हो पाते. घटनाओं के सरकारी आंकड़े कम मान्य हैं. चूंकि 2 प्रतिशत घटनाएं ही पुलिस में दर्ज हो पाती हैं.